Saturday, November 7, 2009

स्वास्थ्य सेवाओं की सामुदायिक निगरानी - युगेष्वर राम

राष्ट्रीय ग्रामीण स्बास्थ्य मिशन के तहत स्वास्थ्य सुविधाएं वंचितों तक पहुंचाने और स्वास्थ्य की स्थितियों में गुणात्मक सुधार के लिए सामुदायिक निगरानी की व्यवस्था की गयी है. समुदाय को जागरूक करने और इस दिषा में पहल करने में स्वयंसेवी संस्थान की भी सराहनीय भूमिका रही है. यह कार्यक्रम प्रारंभिक चरण में देष के नौ राज्यों में संचालित है, जिसमें झारखण्ड भी शामिल है. इसके तहत झारखण्ड के तीन जिलों पलामू, पष्चिम सिंहभूम और हजारीबाग के नौ प्रखण्डों के कुल 135 गांवों में यह सी.बी.एम. कार्यक्रम के नाम से संचालित है.

पलामू जिले के लेस्लीगंज, चैनपुर एवं पाटन प्रखण्ड के 45 गांवों में स्वयंसेवी संस्थान आईडीएफ इस कार्यक्रम का संचालन कर रहे हैं. इस कार्यक्रम के सफल संचालन हेतु समुदाय आधारित निगरानी समिति बनाये गये हैं. इस निगरानी समिति में प्रत्येक गांव से तीन महिलाओं और तीन पुरुषों को जोड़ा गया है. पलामू जिले के तीन प्रखण्डों के पंद्रह गांवों में 90 सीबीएम टीम का गठन किया गया है.

समुदाय आधारित निगरानी समिति का तात्पर्य है कि जो भी योजनाएं चल रही हैं, उसके विषय में जानना, समझना और उसके क्रियान्वयन में अपनी भूमिका निभाना. साथ ही अपने क्षेत्र की जरूरतों के अनुरूप योजना बनाना, ताकि स्थानीय निवासी उन योजनाओं से लाभान्वित हो सकें. खासकर स्वास्थ्य सुविधाएं सभी ग्रामीणों को मुहैया हो सके, स्वास्थ्य की वर्तमान स्थितियों में सुधार हो. इसके लिए ग्राम स्वास्थ्य समिति के सदस्यों के साथ मिलकर इस अभियान को गति दी जा रही है, किन्तु इस कार्य में सबसे बड़ी बाधा ग्राम स्वास्थ्य समिति का सही रूप में न होना है. ग्राम स्वास्थ्य समिति का गठन तब किया गया, जब सहिया चुनाव की बारी आयी.

चैनपुर प्रखण्ड के देवनीस तिर्की बताते हैं कि यदि सहिया का चुनाव नहीं होता तो ग्राम स्वास्थ्य समिति भी अस्तित्व में नहीं आता. वे बताते हैं कि दिसम्बर 2007 में सहिया का चुनाव कराने की बात हुई और सहिया का चुनाव ग्राम स्वास्थ्य समिति के सदस्यों को करना था, तब ग्रामसभा की बैठक बुलाई गयी. उसी समय सभी गांवों में ग्राम स्वास्थ्य समिति का गठन हुआ और तुरंत सहिया का चुनाव भी किया गया. इसके बाद ग्राम स्वास्थ्य समिति के सदस्य यह भूल गये कि यह समिति आखिर बनी क्यों है?

अगर इस पर गौर करें तो इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण है वह है, झारखण्ड में पंचायत चुनाव का न होना. जब तक पंचायत चुनाव संपन्न नहीं होता है तब तक झारखण्ड में चल रही किसी भी योजना के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन में संदेह है. गौर करें तो गांव के विकास और ग्रामीणों को आवष्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने में पंचायत के तहत आठ समितियों का महत्वपूर्ण योगदान है, किन्तु पंचायत चुनाव के अभाव में अन्य योजनाओं के साथ ही नरेगा जैसे रोजगारोन्मुखी कार्यक्रम और ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने वाले एन.आर.एच.एम. कार्यक्रम लड़खड़ा रहे हैं. पंचायत चुनाव होने के पष्चात ही स्वास्थ्य की निगरानी में भूमिका अदा करने वाली समिति ग्राम स्वास्थ्य समिति का महत्व देखने को मिल सकता है.

फिर भी सामुदायिक निगरानी समिति ग्राम स्वास्थ्य समिति और ग्रामीणों के साथ मिलकर स्वास्थ्य की वर्तमान स्थितियों का अवलोकन कर रही है, जिसके लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उप स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर सर्वे रिपोर्ट तैयार की गयी है. इस रिपोर्ट के माध्यम से स्वास्थ्य की वर्तमान सचाई जब सामने आया, तो स्वास्थ्यकर्मियों की बीच कौतूहल है. लेकिन ये सब कुछ इतना आसान भी नहीं था. निगरानी दल गठित करते समय कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. आई.डी.एफ. के प्रखण्ड समन्वयक सुमित कुमार बताते हैं कि जब सीबीएम टीम का गठन करना था, उस समय ग्राम स्वास्थ्य समिति के जो सदस्य थे उन्हें जानकारी नहीं थी कि ग्राम स्वास्थ्य समिति का कार्य क्या है, जिसके कारण सी.बी.एम. टीम के गठन में काफी परेषानी हुई. ग्राम स्वास्थ्य समिति के सदस्यों का कहना था कि पहले ग्राम स्वास्थ्य समिति और सहिया का चुनाव किया गया है उसे कार्यरूप दें, तभी किसी तरह का विचार वे करेंग. लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि हम चुनाव के पीछे न जायें, बल्कि जो चुनाव हो चुके हैं, वह सही रूप से कैसे काम करें उस पर ज्यादा सोचें.

अंतत: लोग सहमत हुए और निगरानी दल का चुनाव हुआ, जिसमें प्रत्येक गांव से तीन महिलाओं और तीन पुरुषों का चयन किया गया. इस प्रक्रिया के दौरान समुदाय आधारित निगरानी दल के द्वारा सर्वे प्रपत्र तैयार कर ग्राम, उप स्वास्थ्य केन्द्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर निगरानी प्रक्रिया पूरी की गयी. ग्राम स्तर पर निगरानी दल की यह निगरानी प्रक्रिया पांच तरह से की गयी जिसमें दलित एवं सामान्य महिलाओं के साथ बैठक कर स्वास्थ्य के विषय में जानकारी ली गयी और पिछले छ: माह में प्रसूति गृह पहुंची महिलाओं का साक्षात्कार भी लिया गया. इस साक्षात्कार के दौरान यह जानने का प्रयास किया गया कि उनको एन.एन.एम., सहिया और आंगनबाड़ी केन्द्र से किस तरह के लाभ मिले हैं. साथ ही आम बैठकर कर पूरे समुदाय से स्वास्थ्य योजनाओं एवं वर्तमान स्वास्थ्य व्यवस्था पर चर्चा की गयी. स्वास्थ्य उप केन्द्र स्तर पर भी सर्वे-प्रपत्र के आधार पर ए.एन.एम. से साक्षात्कार लिया गया और उप स्वास्थ्य केन्द्र पर चिकित्सा सामान की उपलब्धता की जानकारी ली गयी. इसके बाद प्रखण्ड स्तर पर चिकित्सा पदाधिकारी एवं स्वास्थ्य कार्र्यकत्ताओं से भी जानकारी ली गयी. यहां तक कि निगरानी दल द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के प्रयोगषाला, एम्बुलेंस और अस्पताल प्रबंधन के विषय में विस्तृत सर्वे किया गया. इस प्रक्रिया के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और स्वास्थ्यकर्मियों की अनुपस्थिति के साथ ही संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने वाली योजना 'जननी सुरक्षा योजना' में भी काफी अनियमितता देखने को मिली. सीबीएम टीम के द्वारा सर्वे प्रक्रिया पूरी करने और लोक संवाद के बाद जहां ग्रामीणों में स्वास्थ्य सुविधाएं पाने के लिए जागरूकता बढ़ी हैं, वहीं स्वास्थ्यकर्मियों के रवैये में बदलाव कुछ हद तक देखने को मिल रहा है. स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और उप स्वास्थ्य केन्द्र के भवन की बदतर स्थिति में सुधार के साथ ही आवष्यक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराये जाने की जरूरत है. अगर इसी तरह सामुदायिक निगरानी की प्रक्रिया जारी रही, तो नि:संदेह राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिषन वंचितों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में सफल हो पायेगा.

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